बुद्धिहीन तनु जानिके
सुमिरौं पवन-कुमार ।
बल बुधि बिद्या देहु मोहिं
हरहु कलेस बिकार ॥
यहाँ मैं इस दोहे का अर्थ नहीं बताऊंगा क्यूंकि संपूर्ण हनुमान चालीसा के अर्थ पर हम पहले ही बात कर चुके हैं । नीचे दिए हुए लिंक पर क्लिक करके आप संपूर्ण हनुमान चालीसा का अर्थ पढ़ सकते हैं ।
बहुत सरल है हनुमान चालीसा की सभी पंक्तियों का अर्थ। आज के बाद नहीं भूलोगे।
अब यहाँ हम बात करेंगे कलेश और विकार की ।
कलेश और विकार इन दोनों शब्दों का अर्थ जानने से पहले हम यह जान लेते हैं कि कलेश और विकार कितने प्रकार के होते हैं तथा इन सभी प्रकारों के अर्थ क्या हैं ?
शास्त्रों में 5 प्रकार के कलेश और 6 प्रकार के विकार बताये गए हैं ।
कलेश में जो भी क्रिया होती है वह सब हमारे भीतर होती है । बाहर किसी को कुछ होते हुए नहीं दिखेगा । बाहर केवल प्रतिक्रिया देखेगी । जैसे किसी व्यक्ति में अहंकार है या नहीं ये उस व्यक्ति को dehkar नहीं पता चलेगा । वह व्यक्ति उस अहंकार के वशीभूत होकर जब कोई प्रतिक्रिया देगा तब पता चलेगा ।
विकार में क्रिया भी होते हुए दिखेगी और प्रतिक्रिया भी । इसका एक अच्छा सा उदाहरण देता हूँ । मान लीजिये एक विवाहित पुरुष है । विवाह के बाद भी वह और स्त्रियों से सम्बन्ध बनाना चाहता है । अब उसकी यह इच्छा उससे एक क्रिया करवाएगी । वह क्रिया होगी स्त्रियों को पटाना इत्यादि । यह क्रिया स्पष्ट रूप से देखी जा सकेगी जो भी उसके साथ उसका कोई मित्र अगर रहता है तो । और प्रतिक्रिया भी दिखेगी कल को जब उसकी पत्नी को अपने पति के बारे में यह सब पता चलेगा ।
कलेश :
- अविद्या : जिसके पास विद्या नहीं है वह सदैव अभाव में ही जियेगा । विद्या जिसे अंग्रेजी में skill कहते हैं । विद्या के बिना व्यक्ति अर्थ (money) के अभाव में ही जीता है । जीवन में सबसे बड़ा दुःख जो तुलसीदास भी मानते हैं वह है गरीबी । गरीबी अविद्या का ही परिणाम है । जिस घर में अविद्या का प्रभाव रहेगा वहां कलेश अर्थात झगड़ा होता ही रहेगा ।
- अस्मिता : अस्मिता मतलब अहंकार । अहंकार मतलब अपनी बुद्धि या अपने बल या अपनी विद्या को दूसरों से अधिक समझना । जिस व्यक्ति में अहंकार प्रबल रहेगा वह दूसरों की बात ध्यान से सुन नहीं पायेगा और उनमें ही कमी निकलेगा । इससे जीवन में कभी सुख और समृद्धि नहीं आ पायेगी ।
- अभिनिवेश : अभिनिवेश का अर्थ मृत्यु का भय । जिसे हर पल मृत्यु का भय रहेगा वह जीवन में कुछ भी नहीं कर पायेगा । यहाँ मृत्यु का भय का अर्थ है इस शरीर से अत्यधिक प्रेम । जबकि शरीर नश्वर है । इसे एक दिन नष्ट होना ही है । यहाँ अभिनिवेश का सीधा सा अर्थ है जीवन को संतुलित ढंग से जीना । न अधिक चिंता करना और न ही अधिक लापरवाही करना ।
- राग : राग अर्थात लगाव । राग में हम कई बार गलत का समर्थन भी कर देते हैं । उदाहरण से समझते हैं – कई बार हम देखते हैं कि एक पिता अपने पुत्र का अपराध छुपाने के लिए किसी भी हद तक चला जाता है जिससे उसके पुत्र को जेल न हो । ऐसा क्यों ? जानता तो वो पिता भी है कि उसके पुत्र ने अपराध किया है, जो गलत है , उसे सजा मिलनी चाहिए पर फिर भी वह पिता पूरा प्रयास करता है अपने पुत्र को बचाने का । क्यों ?
क्यूंकि वह पिता राग से ग्रसित है । राग हमें अँधा कर देती है । फिर जीवन में कष्ट आते हैं । राग गलत और सही का अंतर बुद्धि से समाप्त कर देता है ।
महाभारत में धृतराष्ट्र राग के ही शिकार थे ।
- द्वेष : राग का उल्टा द्वेष होता है । यदि किसी व्यक्ति से हमारे विचार नहीं मिलते तो हम उस व्यक्ति से नफरत करने लगते हैं । मतभेद होना गलत नहीं है । हर किसी का अपना विचार होता है । परन्तु मतभेद कभी मनभेद में नहीं बदलना चाहिए । हमें इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि किसी भी व्यक्ति के सभी विचार सही नहीं हो सकते और ना ही किसी व्यक्ति के सभी विचार गलत ही हो सकते हैं । द्वेष में कई बार हम सामने वाले की सही बात को भी अनदेखा कर देते हैं जो गलत है । द्वेष हमारे मन और मस्तिष्क में विष घोलते हैं और इससे हमारे जीवन में कलेश बढ़ता है ।
विकार :
- काम : यहाँ काम का अर्थ वो नहीं है जो हम पैसे कमाने के लिए करते हैं । यहाँ काम का अर्थ है इच्छाएँ । मनुष्य की इच्छाएँ अनंत हैं । ये इच्छाएँ रावण के शीश की तरह हैं । जब युद्ध भूमि में श्री राम जी रावण का एक शीश काटते तो दूसरा शीश उस कटे शीश की जगह फिर निकल आता था । रावण के शीश मनुष्य की इच्छाओं के सूचक हैं । एक इच्छा पूरी होती नहीं कि दूसरी इच्छा प्रकट हो जाती है । जो इच्छाओं के पीछे ना भाग कर आवश्यकताओं का पीछा करता है वही जीवन का भोग करता है ।
- क्रोध : क्रोध एक उपकरण (tool) है । पर अपनी बेवकूफी के चलते हम क्रोध का उपकरण बन जाते हैं । जब व्यक्ति क्रोध में होता है तो क्रोध उसके वश में नहीं होता, वह क्रोधित व्यक्ति स्वयं क्रोध के वश में होता है । इसका सीधा सा मतलब है कि क्रोध में व्यक्ति क्रोध का दास हो जाता है और कुछ भी गलत कर बैठता है । बाद में क्रोध के जाते ही व्यक्ति को पछतावा होता है ।
- लोभ : लालच व्यक्ति के कुछ भी कराती है क्यूंकि धन का लोभ मनुष्य को पतित कर देती है । धन का लोभी मनुष्य ना स्वयं सुख में जीता है और ना ही सामने वाले व्यक्ति को जीने देता है । लोभी मनुष्य केवल धन चाहता है और इसके लिए वह विश्वासघात करने से भी नहीं चूकता । लोभी मनुष्य के सभी रिश्ते धीरे धीरे समाप्त हो जाते हैं और वह जीवन में कभी सुखी नहीं हो पाता ।
- मोह : मोह का अर्थ तब अच्छे से समझ में आएगा जब हम प्रेम का अर्थ समझेंगे । यदि हम किसी से प्रेम करते हैं तो हम कभी कभी उसकी भलाई के लिए बुरे भी बन जाएंगे । जैसे एक पिता अपने बच्चों से प्रेम करता है । वह उन्हें डांटता भी है और उचित लगे तो कठोर दंड भी देता है । यह सब वह पिता इसीलिए करता है जिससे उसके बच्चे अनुशासित (discipline) और संयमी बनें । परन्तु यदि वही पिता अपने बच्चों के लिए मोह से ग्रसित हो जाए तो उसे अपने बच्चों की कमियां भी अच्छी लगने लगेंगी और कठोर दंड देना तो दूर वह ज़ोर से बच्चों को डांट भी नहीं पायेगा ।
- मद : मद यानी नशा । यदि कोई व्यक्ति ऊँचे पद पर पहुँच जाए तो उसको उस पद का नशा हो जाता है । वह कभी भी उस पद से हटना नहीं चाहेगा चाहे फिर उस पद पर बने रहने के लिए उसे किसी की हत्या भी क्यों न करनी पड़े । इसे ही कहते हैं मद ।
- मत्सर : मत्सर का अर्थ होता है jealousy । हमारा कोई मित्र हमसे अच्छे पैसे कमा रहा है या हमारा कोई पड़ोसी अपने जीवन में तरक्की करते जा रहा है या हमारा ही कोई रिश्तेदार जो पहले तो गरीब था परन्तु अब बहुत पैसे कमा रहा है तो हमें जलन होने लगती है, वही है मत्सर ।विकार के सारे केंद्र बाहर हैं । इच्छाएँ बाहर कुछ सुन्दर देखकर ही होती हैं अब चाहे वह मिलने के बाद जीवन कष्टों से भर जाए, लोभ धन को देखकर ही आएगा, मोह बाहर किसी व्यक्ति या वस्तु से ही होगा, जलन बाहर किसी को अपने से उप्पर जाते देखकर ही होगी ।कलेश के सारे केंद्र भीतर हैं । विद्या सीखने के लिए मन मना करेगा, मृत्यु का भय भीतर हैं, जो मन को अच्छी लगने वाली बात कहेगा उससे राग हो जायेगा और जो थोड़ा सा सीधे मुँह बात नहीं करेगा वो हमारे मन का शत्रु हो जाएगा ।
अंत में मैं बस इतना ही कहना चाहता हूँ कि कलेश और विकार यह शब्दों में नहीं समझाया जा सकता, केवल इशारा किया जा सकता है । बस इतना समझा जा सकता है चाहे कलेश हो या विकार यह सब हमारे शत्रु हैं, जो हमारे जीवन में कभी सुख को आने नहीं देते ।
अब यह शत्रु हमसे दूर कैसे जाएंगे ? यही सोच रहे होंगे आप । है ना ?
मणिपुर चक्र की साधना करने से इन शत्रुओं से छुटकारा मिल जाएगा और यह साधना बहुत सरल है लेकिन लाभ बहुत हैं । नीचे दिए हुए link पर click करके आप मणिपुर चक्र की साधना के विषय में जान सकते हैं ।
मणिपुर चक्र सभी शक्तियों का केंद्र है ।
आपने यहाँ तक इतने ध्यान से पढ़ा, आपका धन्यवाद ।