लक्ष्मी जी प्रतीक हैं धन का । सनातन धर्म में प्रतीक का बहुत महत्व है क्यूंकि प्रतीक के माध्यम से बड़े से बड़ा और कठिन से कठिन सिद्धांत (Theory) भी समझाई जा सकती है ।
देवी लक्ष्मी हमेशा भगवान विष्णु के पैर क्यों दबाती रहतीं हैं? माता लक्ष्मी हमेशा भगवान विष्णु के पैरों की तरफ क्यों बैठी रहती हैं ? यह प्रश्न स्वतः ही हमारी बुद्धि में आ जाता है और आज तक इसका सटीक दर्शन किसी को समझ में नहीं आया है । सब अपने दृष्टिकोण से समझने का प्रयास करते हैं और आगे समझाते हैं । मैं भी यहाँ अपना दृष्टिकोण रखूँगा । आप स्वतंत्र हैं मुझसे असहमत होने के लिए । अब उत्तर पर आते हैं ।
मैं प्रतिदिन अपने माता पिता के चरण दबाता हूँ । हमने रामचरितमानस में भी पढ़ा है कि लक्ष्मण जी भी प्रभु श्री राम जी के चरण दबाते थे । भरत जी तो प्रभु श्री राम की चरण पादुका ही अपने सिर पर रख कर अयोध्या लाये थे ।
यह सब मैं इसीलिए बता रहा हूँ क्यूंकि ऐसा नहीं है कि पत्नी ही पति के चरण दबाती है । चरण हमेशा उसी व्यक्ति के स्पर्श किये जाते हैं जिसने हमारे जीवन में या फिर समाज में अपना योगदान दिया हो । यह योगदान समय का हो सकता है, धन का हो सकता है, तन का हो सकता है जैसे हमारे देश के जवान जो सीमा पर तैनात हैं हमारी रक्षा के लिए, ज्ञान का हो सकता है, व्यवस्था का हो सकता है, इत्यादि ।
देवी लक्ष्मी भगवान विष्णु की पत्नी हैं । सबसे पहले इसका दर्शन समझ लेते हैं ।
विष्णु का अर्थ है पालन करने वाला और लक्ष्मी का अर्थ है धन । पालन करे के लिए धन की आवश्यकता होती है । बिना धन के हम खुद के शरीर की ही देख – भाल नहीं कर सकते तो परिवार की तो क्या ही करेंगे ? और विष्णु जी तो पूरे ब्रह्माण्ड का पालन करते हैं ।
यहाँ समझने वाली बात यह है कि सबसे पहले हमें अपनी बुद्धि विष्णु जी की तरह बनानी है । परिश्रम करके बहुत धन कमाना है परन्तु उस धन को ज़मीन में गाड़ कर नहीं रखना है, ज़्यादा नहीं तो अपने लाभ का 10 प्रतिशत समाज सेवा में तो लगाना ही है जिसे शास्त्रों में दशज कहा गया है ।
समाज सेवा जैसे किसी धर्मशाला में दान करना या वहां अच्छी व्यवस्था बनाना, अनाथ आश्रम में बच्चों के लिए किताबों का प्रबंधन करना, वहां अच्छी व्यवस्था बनाना, गांव में तालाब बनवा देना, इत्यादि सभी धर्म के कार्य करना ।
पर होता यह है कि व्यक्ति के पास जब धन आता है तो वह समाज सेवा तो नहीं परन्तु विलासिता की ओर भागता है । विलासिता यानी घर में मुझे बाथरूम में नलका तो चाहिए परन्तु सोने का । बाथरूम में नलका होना आवश्यकता है परन्तु सोने का नलका होना विलासिता है ।
विष्णु जी पूरे ब्रह्माण्ड के पालनकर्ता हैं, लक्ष्मी जी उनकी पत्नी हैं । सारे विश्व के धन की जो देवी हैं लक्ष्मी जी, वे विष्णु जी के साथ हैं लेकिन फिर भी विष्णु जी की बुद्धि स्थिर है । जिसके साथ धन की देवी हैं वह बिलकुल शांत हैं । विष्णु जी विलासिता नहीं, आवश्यकता का सिद्धांत हमें सिखा रहे हैं । धन आने के बाद भी तुम्हारे जीवन में शान्ति नहीं आएगी, जब तक तुम अपनी बुद्धि को कल्याणकारी नहीं बनाओगे ।
यदि अभी हमारे पास अथाह धन आ जाये तब क्या होगा ?
अहंकार हमारे सिर पर चढ़ जाएगा । क्यूंकि धन अर्थात शक्ति और जिसके पास शक्ति होगी वह अहंकारी होगा, किसी को अपने आगे कुछ समझेगा नहीं, किसी की अच्छी सलाह भी उसे क्रोध से भर देगी जैसे रावण को अपने हितैषियों की बात चुभती थी । इसीलिए विष्णु जी हमें बता रहे हैं कि मेरी तो पत्नी ही सारे ब्रह्माण्ड के धन की देवी हैं परन्तु फिर भी मैं शांत हूँ, विलासी नहीं हूँ, संसार के कल्याण के लिए, पालन के लिए कार्य करता हूँ, तो तुम भी वैसे ही बनो । चाहे जितना धन तुम्हारे पास आ जाये विलासी मत बनना, समाज सेवा करना और सबके कल्याण के लिए ही धन को लगाना ।
लक्ष्मी जी जैसा कि हम उप्पर जान चुके हैं सारे ब्रह्माण्ड के धन की देवी हैं और विष्णु जी यानी स्थिर बुद्धि, कल्याणकारी बुद्धि हैं और चरण दबाना मतलब सेवा करना और सेवा तभी होती है जब अहंकार (ego) शून्य हो जाता है ।
तो लक्ष्मी जी हमें बता रही हैं कि मैं सम्पूर्ण धन की देवी होने के बाद भी अहंकारी नहीं हूँ और तुम थोड़ा सा धन पाकर भी ऐंठने लग जाते हो । धन को सेवा भाव में लगाओ यही लक्ष्मी जी सन्देश दे रही हैं । और धन को सेवा भाव में तभी लगा पाओगे जब बुद्धि को कल्याणकारी बनाओगे । नहीं तो धन सेवा भाव में नहीं लगेगा केवल ज़मीन में गाड़ा जाएगा, जन कल्याण नहीं होगा ।
लक्ष्मी जी और विष्णु जी यही सन्देश हमें दे रहे हैं, जितना मैं समझ पाया हूँ ।
अब एक और प्रश्न का उत्तर मैं यहाँ दे देता हूँ कि
विष्णु जी कभी किसी भी चित्र में माँ लक्ष्मी के पैर दबाते हुए नहीं दिखते । इसके पीछे क्या कारण है ?
क्यूंकि विष्णु जी लक्ष्मी जी से श्रेष्ठ हैं । अब लक्ष्मी जी स्त्री हैं, क्या इसलिए विष्णु जी से कम हैं ?
नहीं ऐसा नहीं है । लक्ष्मी मतलब धन की देवी । धन खुद से चाहे भी तो किसी का कल्याण नहीं कर सकता और ना ही खुद से किसी के पास स्वयं चलकर आता है । व्यक्ति धन को अपने परिश्रम से, ज्ञान से पाता है । जब धन कल्याणकारी हाथों में आता है तभी कल्याण होता है । इसीलिए लक्ष्मी जी से श्रेष्ठ विष्णु जी हैं । यहाँ श्रेष्ठ का सम्बन्ध स्त्री और पुरुष से नहीं है । जैसे मैंने उप्पर बताया कि मैं प्रतिदिन अपने माता पिता के चरण दबाता हूँ तो क्या मुझसे जबरदस्ती दबवाया जा रहा है ? या मेरा अपने माता – पिता के प्रति जो प्रेम है, वह मुझसे उनके चरण दबवाता है । क्या मैं अपने माता – पिता के चरण दबाने से छोटा हो जाता हूँ ? और यदि हो भी जाता हूँ तो मुझे गर्व हैं अपने छोटे होने से ।
मेरा उत्तर यहीं समाप्त होता है ।
बाकी आप अपने दृष्टिकोण को भी comments के माध्यम से सामने लाएं जिससे मेरे दृष्टिकोण का और भी विस्तार हो सके ।
आप सबने इतने ध्यान से यहाँ तक पढ़ा, आपका धन्यवाद ।