धर्म का असली अर्थ: भीष्म पितामह की प्रतिज्ञा

AmanSpirituality3 months ago11 Views

महाभारत के युद्ध में भीष्म पितामह का नाम सम्मान और निष्ठा का प्रतीक है। उनकी कहानी केवल युद्ध और वीरता की नहीं, बल्कि धर्म के असली अर्थ को समझने की भी है। उनके द्वारा निभाई गई प्रतिज्ञा और धर्म का पालन हमें सिखाता है कि धर्म केवल शास्त्रों में लिखे नियमों का पालन नहीं, बल्कि अपने कर्तव्यों के प्रति अडिग रहना है।


गंगा पुत्र का कर्तव्य

भीष्म पितामह, जिनका असली नाम देवव्रत था, राजा शांतनु और गंगा के पुत्र थे। शांतनु ने सत्यवती नाम की एक महिला से विवाह करना चाहा। लेकिन सत्यवती के पिता ने शर्त रखी कि उनकी संतान ही सिंहासन की अधिकारी होगी।

राजा शांतनु इस शर्त को सुनकर असमंजस में पड़ गए, क्योंकि देवव्रत उनके सबसे बड़े और योग्य पुत्र थे। जब देवव्रत को यह बात पता चली, तो उन्होंने अपने पिता के सुख के लिए एक ऐसा वचन लिया, जिसने इतिहास में उनकी पहचान को अमर कर दिया।

उन्होंने प्रतिज्ञा की:

  1. वह आजीवन ब्रह्मचारी रहेंगे।
  2. वह सिंहासन के अधिकार का त्याग करेंगे।
  3. वह सत्यवती की संतान को राजगद्दी दिलाने के लिए हर संभव प्रयास करेंगे।

प्रतिज्ञा का भार

देवव्रत की यह प्रतिज्ञा इतनी कठोर थी कि देवता भी उन्हें आशीर्वाद देने आए और उन्हें “भीष्म” की उपाधि दी, जिसका अर्थ है “कठोर प्रतिज्ञा करने वाला।”

भीष्म पितामह ने अपने जीवन का हर क्षण अपने वचन को निभाने में लगाया। उन्होंने कभी शादी नहीं की, कभी अपने व्यक्तिगत सुख की चिंता नहीं की, और हमेशा कौरवों और पांडवों के प्रति समान भाव रखा, भले ही हालात कितने भी कठिन क्यों न हों।


धर्म का पालन और अंतर्द्वंद्व

महाभारत के युद्ध में भीष्म पितामह ने कौरवों का साथ दिया, क्योंकि उनका धर्म कौरवों की राजगद्दी की रक्षा करना था। लेकिन वह जानते थे कि पांडव धर्म के पक्ष में हैं। यह उनके जीवन का सबसे बड़ा अंतर्द्वंद्व था।

जब युद्ध के दौरान अर्जुन ने शिखंडी को उनके सामने खड़ा किया, तो भीष्म ने अपनी सारी शक्ति त्याग दी। उन्होंने कहा, “मैं जानता हूं कि धर्म पांडवों के साथ है, लेकिन मेरा धर्म मेरे वचन के साथ है।”


कहानी से मिलने वाली सीख

  1. धर्म और कर्तव्य के बीच संतुलन: धर्म का पालन हमेशा सरल नहीं होता। यह हमें कठिन चुनावों के बीच मजबूती से खड़ा रहना सिखाता है।
  2. वचन की महत्ता: अपने वचनों का पालन करना सच्चे धर्म का प्रतीक है।
  3. आत्म-बलिदान: व्यक्तिगत इच्छाओं से ऊपर उठकर समाज और परिवार के लिए त्याग करना भी धर्म है।
  4. अंतर्द्वंद्व से लड़ना: जीवन में कई बार सही और गलत का फर्क धुंधला हो सकता है। ऐसे में धर्म के मार्गदर्शन से ही समाधान मिलता है।

सोचने वाली बात

क्या हम अपने जीवन में दिए गए वचनों का पालन कर पाते हैं? क्या हम अपने कर्तव्यों और धर्म को हर परिस्थिति में निभाने का साहस रखते हैं?

कमेंट करें और बताएं: भीष्म पितामह की कहानी ने आपको क्या सिखाया, और आज के समय में धर्म का क्या अर्थ है?

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