महाभारत में स्वर्गारोहण पर्व में यह कथा आती है जब पांडव स्वर्ग की यात्रा के लिए पर्वत पर चढ़ कर जा रहे थे । यात्रा में एक – एक करके द्रौपदी, सहदेव, नकुल, अर्जुन और भीम मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं । परन्तु इस यात्रा में शुरुआत से एक कुत्ता भी पांडवों के साथ पीछे – पीछे चलने लग जाता है ।
अंत में स्वर्ग के द्वार के आगे युधिष्ठिर और कुत्ता ही पहुँचते हैं । स्वर्ग का द्वारपाल युधिष्ठिर से कहता है कि आप कुत्ते के बिना ही स्वर्ग के अंदर प्रवेश कर सकते हैं । कुत्ते के साथ स्वर्ग के अंदर प्रवेश नहीं हो सकता क्यूंकि केवल मनुष्य योनि में जन्म लेने के बाद ही व्यक्ति अपने कर्मों से स्वर्ग पाता है ।
पशु योनि में कोई स्वर्ग नहीं जा सकता ऐसा द्वारपाल ने कह कर युधिष्ठिर को समझाया ।
फिर युधिष्ठिर और द्वारपाल के बीच वाद – विवाद हुआ और उससे मैंने जो सीखा, मैं वह आपको बताऊंगा ।
कुत्ता युधिष्ठिर के साथ यात्रा की शुरुआत से था । रास्ते में युधिष्ठिर और कुत्ते को छोड़कर सभी पांडव मृत्यु को प्राप्त हुए ।
युधिष्ठिर ने कहा कि वह कुत्ते के बिना स्वर्ग नहीं जाएंगे क्यूंकि कुत्ते ने शुरू से अंत तक उनका साथ नहीं छोड़ा ।
मनुष्य होकर स्वर्ग की लालसा के लिए यदि कुत्ते का साथ छोड़ दिया, जिसने रास्ते के अंतिम छोर तक अपना साथ दिया तो कुत्ता फिर भी स्वर्ग का अधिकारी होगा परन्तु वह मनुष्य नहीं हो सकता । बात उचित है ।
आज थोड़ा सा प्रलोभन यदि किसी को दे दिया जाए और उससे कहा जाए तुम अपने भाई का साथ छोड़ दो तो व्यक्ति छोड़ देता है । अरे एक कुत्ता भी यदि किसी की रोटी खाता है तो अपने अंतिम समय तक उसका वफादार बना रहता है ।
आज कोई बच्चा यदि थोड़ा धन भी कमाने लग जाए तो माता पिता की बातें उसे बोज लगने लगती हैं । आज जगह – जगह वृद्धाश्रम खुले हुए हैं । बच्चे अपने माता – पिता को अपने घर से निकालकर वृद्धाश्रम छोड़ आते हैं और यहाँ युधिष्ठिर जी को स्वर्ग मिल रहा है लेकिन फिर भी उन्होंने स्वर्ग को ठोकर मारकर कुत्ते का साथ चुना ।
युधिष्ठिर और कुत्ते की कथा हमें यह सन्देश देती है कि जिसने हमारा साथ हमेशा दिया, हर कठिनाई में जो हमारे साथ खड़ा रहा, उसका साथ हमें कभी नहीं छोड़ना चाहिए, फिर चाहे राजा की कुर्सी को ही ठोकर क्यों ना मारनी पड़े मार देना परन्तु अपनों का साथ जीवन में कभी नहीं छोड़ना ।