Janeu Kandhe Par Kyun Pehante Hain ? | जनेऊ क्या है ?

AmanSpirituality2 years ago4 Views

आज जनेऊ के विषय में हम सारी महत्वपूर्ण बातें जानेंगे जो जानना बहुत ही आवश्यक है और यहाँ हम बिलकुल practical बात करेंगे । जनेऊ के विषय में बहुत सी जानकारी गूगल पर उपलब्ध है परन्तु मैं यहाँ उतना ही बताऊंगा जितना हमें पता होना ही चाहिए । अब बिना देर करे मैं अपने लेख का आरम्भ करूँगा ।

जनेऊ या यज्ञोपवीत एक remembering alarm है । Remembering alarm मतलब जैसे हम अपने मोबाइल में अलार्म लगाते हैं एक निश्चित समय का और जैसे ही वह उसी समय पर बजता है, हमें तुरंत याद आ जाता है कि कौन सा कार्य हमें इस समय करना है और बिना भूले हम वह कार्य कर लेते हैं । सीधा सा मतलब यह हुआ कि अलार्म हम इसीलिए लगाते हैं जिससे हम अपना कार्य जो उसी समय पर होना चाहिए हो सके और हम भूल न जाएँ ।

जनेऊ भी हमको ऋषियों द्वारा दिया एक अलार्म है । क्यूंकि व्यक्ति भूल बहुत जल्दी जाता है इसीलिए ऋषियों ने हमारे लिए यज्ञोपवीत संस्कार बनाया है ।

यज्ञोपवीत यानी यज्ञ जितना पवित्र । अब यज्ञ पवित्र क्यों है ? पहले यह समझ लेते हैं ।

यज्ञ मतलब बलिदान । किस चीज़ का बलिदान ?

सबसे पहले तो यह समझ लेते हैं बलिदान शब्द का प्रयोग हमेशा शुभ कार्य के लिए ही होता है । जैसे हमारे देश के जवान हमारी रक्षा करते हुए अपने जीवन का बलिदान दे देते हैं ठीक वैसे ही यज्ञ में हम अपने जीवन का तो नहीं परन्तु अपने धन का, समय का और शुद्ध सामग्रियों का जो भी यज्ञ में लगती हैं उनका बलिदान देते हैं । पर क्यों ?

एक उदाहरण से समझाता हूँ । यज्ञ में हम जब आहुति देते हैं तो घी भी डालते हैं, लॉन्ग, इलाइची, मुलैठी, अश्वगंधा, इत्यादि सारी औषधियां डालते हैं । पर क्यों हम इन सारी सामग्री को अग्नि में डालकर नष्ट कर रहे हैं ?

नहीं । नष्ट नहीं कर रहे हैं । जैसे आप उसी अग्नि में लाल मिर्च डाल दें तो जितने भी लोग उस समय हवन करने के लिए बैठे हैं, सबकी आँख से पानी आने लग जाएगा और सब उस हवन से उठकर भाग जाएंगे क्यूंकि वहां बैठ पाना संभव ही नहीं हो पायेगा । परन्तु ऐसा क्यों हुआ ?

ऐसा इसीलिए हुआ क्यूंकि जब भी हम अग्नि में कुछ भी डालते हैं तो अग्नि उसका कई गुना करके वायु को सौंप देती है । जैसे जब आप अग्नि में लाल मिर्च डालेंगे तब लाल मिर्च के जो गुण हैं वही वायु में आकर सबकी आँख में जाने लगेंगे और आँखों में से पानी और जलन होने लगेगी ।

इसी परकार जब हम अच्छे पदार्थ अग्नि में डालते हैं तब उनके लाभकारी गुण वायु में घुलकर हमारे शरीर के भीतर जाते हैं और हमें लाभ पहुंचाते हैं ।

यज्ञ क्यों पवित्र है यह तो हमने जान लिया, अब बात करते हैं जनेऊ क्यों पवित्र है ?

जनेऊ इसीलिए पवित्र है क्यूंकि यह हमें तीन ऋण जो हमें अपने जीवनकाल में पूरे करने हैं उनकी याद दिलाता है ।

वह तीन ऋण कौन से हैं ?

ऋषि ऋण, पितृ ऋण और देव ऋण ।

ऋषि ऋण का अर्थ होता है आपने जो भी ज्ञान अभी तक लिया है और आगे लेते रहेंगे वह सब आपको स्वयं तक ही नहीं रखना है । इस लिए हुए ज्ञान को आपको अपने माध्यम से आगे आने वाली पीढ़ी को देते जाना है । जैसे मैं अभी अपना ऋषि ऋण उतार रहा हूँ और आगे भी जितना सीखता जाऊंगा उतना आप सबको बताता जाऊँगा जिससे मेरा ऋषि ऋण उतरता जाएगा और ज्ञान की गंगा कभी रुकेगी नहीं ।

पितृ ऋण का अर्थ हुआ अपने माता-पिता की सेवा करना और जब हमारी संतान हो तब उन्हें एक उत्तम नागरिक बनाने का प्रयास करना जैसे हमारे माता पिता ने हमें बनाया । जिस देश में पितृ ऋण जैसा दर्शन आया, उस देश में आज लोग अपने माता पिता को वृद्धाश्रम में छोड़ रहे हैं । यह अत्यंत दुःख और सोच का विषय है । 

देव ऋण का अर्थ हुआ कि जितना आपके लिए आवश्यक है केवल उतना ही प्रयोग करना और आने वाली पीढ़ी के लिए विचार करना । आज हम पेड़ काटे जा रहे हैं अपनी सुविधा के लिए परन्तु उनकी जगह नए पेड़ नहीं लगा रहे हैं जिससे आने वाली पीढ़ी को कष्ट भोगना पड़ेगा । न उन्हें शुद्ध भोजन मिलेगा और न ही शुद्ध वायु । आज जो हम बाढ़ का इतना प्रकोप देख़ते हैं वह सब कई सारे जंगल के कटने के कारण ही है ।

अब आप कहेंगे कि जंगल की कमी होने से बाढ़ का क्या सम्बन्ध है ?

सम्बन्ध है । जंगल की मिट्टी वर्षा का पानी अपने भीतर सोख कर फिर धीरे धीरे नीचे ले जाती है जिससे अचानक से नदियों के पानी का स्तर (level) बढ़ता नहीं है । अभी जंगल की कमी होने से जब वर्षा होती है तब मिट्टी इतना पानी नहीं सोखती और सारा वर्षा का पानी एक साथ नदी मैं आता है जिससे बाढ़ आ जाती है ।

फिर से जनेऊ पर आते हैं । जनेऊ हम कंधे पर इसीलिए पहनते हैं क्यूंकि यह तीनों ऋण का बोझ हमें अपने कन्धों से हटाने के लिए हमेशा प्रयास करते रहना है ।

यह इतना सुन्दर दर्शन है । जनेऊ हमें हमेशा हमारा कर्त्तव्य याद दिलाने के लिए हमारे कंधे पर रखा जाता है ।

अब इस प्रश्न का उत्तर भी दे देते हैं कि क्या जनेऊ लड़कियाँ पहन सकती हैं ?

इसका उत्तर मैं आप पर छोड़ता हूँ । क्या जनेऊ के विषय में यह सब जानने के बाद हमें स्त्रियों को भी जनेऊ करना चाहिए या नहीं ? पहले स्त्रियों का जनेऊ होता था या नहीं होता था, यह सब महत्वपूर्ण नहीं है क्यूंकि समय, काल और परिस्थिति हमेशा बदलती रहती है जिससे व्यवस्थाएँ भी बदल जाती हैं । उदाहरण के लिए जब भारत ग़ुलाम हुआ तब बहुत सी व्यवस्थाएँ परिवर्तित हुईं जैसे सती प्रथा, स्त्रियों के शिक्षा के अधिकार का हनन इत्यादि । इन सब विषयों पर भी आने वाले समय में हम विस्तार से चर्चा करेंगे ।

अंत में जनेऊ के महत्व को जानते हुए, मैं बस इतना ही कहना चाहूंगा कि समाज में चाहे स्त्री हो या पुरुष, अमीर हो या गरीब, ब्राह्मण हो, क्षत्रिय हो, वैश्य हो या शूद्र, सभी का जनेऊ होना चाहिए या नहीं होना चाहिए, यह पुनः विचार करने की आवश्यकता है ।

आपने इतने ध्यान से यहाँ तक पढ़ा । आपका धन्यवाद ।

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