चक्र यानी पहिया । भारतीय दर्शन ने मानव शरीर में 7 चक्र की अवधारणा (concept) दी है । मानव शरीर को यदि आप पूरा चीर- फाड़ करके देखेंगे भीतर से, तो इन सातों में से एक भी चक्र आपको दिखाई नहीं देगा । जैसे वायु में सुगंध या दुर्गन्ध दिखाई नहीं देती, केवल अनुभव ही की जा सकती है, उसी प्रकार शरीर में यह 7 चक्र देखे नहीं जा सकते, केवल इनकी शक्तियों का प्रभाव अनुभव किया जा सकता है ।
क्यूंकि ये ऊर्जा के नाम हैं । मानव शरीर में 7 केंद्र हैं ऊर्जा के । केंद्र यानी जहाँ ऊर्जा का निर्माण होता है और वहीं से पूरे शरीर को ऊर्जा (energy) की सप्लाई होती है । यहाँ एक बात ध्यान देने योग्य है कि मनुष्य केवल अपने जन्म के साथ एक ही जागृत चक्र लेकर आता है और वह चक्र है मूलाधार चक्र।
आगे बढ़ने से पहले एक और प्रश्न का उत्तर दे देता हूँ कि इन 7 ऊर्जा के केंद्र को चक्र ही क्यों कहा गया ? 7 त्रिकोण या 7 आयत (rectangle) क्यों नहीं कहा गया ?
त्रिकोण, वर्ग या आयत इन सब में एक सामान्य बात यह है कि इन सब में किनारे (edges) होते हैं । किसी वाहन में यदि गोल पहिये के स्थान पर त्रिकोण या वर्ग या आयत के आकार का पहिया लगा दें तो वह वाहन सड़क पर चल नहीं पायेगा । और यदि कहीं थोड़ी कमज़ोर सड़क आयी तो इनमें से कोई न कोई किनारा उसी सड़क में धस जाएगा । केवल गोल पहिया ही किसी भी वाहन को सुचारु (smoothly) रूप से चला सकता है ।
शरीर में ऊर्जा के 7 केंद्रों को चक्र इसीलिए कहा गया क्यूंकि एक बार ध्यान से यह चक्र जागृत हो गए तो अंत समय तक सुचारु (smoothly) रूप से चलते जाएंगे .
अब फिर से मूलाधार चक्र पर आते हैं ।
मूलाधार चक्र ही एक ऐसा चक्र है जिसे जागृत नहीं करना पड़ता । पशु का भी मूलाधार चक्र जागृत रहता है । किसी पशु को सम्भोग करना नहीं सिखाना पड़ता । मूलाधार चक्र वासना का चक्र है । वासना का अर्थ केवल सम्भोग नहीं है । वासना में आहार (food), निद्रा (sleep), भय (fear), मैथुन (sex), यह सब आते हैं ।
अब आगे बढ़ने से पहले इस प्रश्न का उत्तर भी ले लेते हैं जो अब तक हमारी बुद्धि ने हमसे पूछ ही लिया होगा ।
क्या प्रमाण है कि चक्र, ध्यान से ही जागृत होंगे ?
इसका उत्तर एक उदाहरण से अच्छे से समझ में आ जायेगा । एक व्यक्ति सड़क पर चल रहा था । उसे अपने पिता की दुकान पर जाना था । क्यूंकि पहले ही उसे विलम्ब (late) हो गया था तो वह बहुत तेज़ी से चलता हुआ अपने मार्ग पर बढ़ रहा था । रास्ते में उसके एक मित्र ने उसे सामने से आते देखा तो मज़ाक में ही नमस्ते साहब कहा । यह व्यक्ति सीधा आगे बढ़ गया बिना अपने मित्र से मिले । फिर दुकान पर गया और अपने पिता को भोजन दे दिया ।
कुछ दिनों बाद जब उस व्यक्ति की मुलाक़ात अपने मित्र से हुई तो उस मित्र ने कहा तुमने तो मुझे अनदेखा कर दिया था । यह व्यक्ति बोला कब ?
पूरा किस्सा सुनने के बाद वह व्यक्ति अपने मित्र से बोला हो सकता है मैंने तुम्हें देखा होगा परन्तु उस समय मेरा पूरा ध्यान दुकान पर जल्दी पहुँचने में था। मेरा पूरा ध्यान बस उस समय अपनी चाल पर था कि कितनी तेज़ी से चलकर मैं फटाफट दुकान पर पहुँच जाऊं । इसीलिए शायद मैं तुम्हें देखकर भी देख नहीं पाया और तुम्हारे नमस्ते कहने पर भी मुझे सुनाई नहीं दिया ।
अब यहाँ समझने वाली बात यह है कि क्यूंकि उस व्यक्ति का ध्यान उस समय केवल जल्दी से जल्दी अपनी दुकान पर पहुँचने पर था इसीलिए वह अपने मित्र को देखते हुए भी देख नहीं पाया और उसके मित्र के नमस्ते कहने पर भी उस ध्वनि को सुन नहीं पाया ।
आँखें भी तभी देखती हैं जब हमारा ध्यान आँखों पर होता है । कान भी तभी सुनते हैं जब हमारा ध्यान कान पर होता है । बिना ध्यान के यह साड़ी इन्द्रियाँ व्यर्थ हैं । बिना ध्यान के आँखें देखकर भी नहीं देख पाएंगी और कान सुनकर भी नहीं सुन पाएंगे ।
अब थोड़ा और आगे बढ़ते हैं ।
चक्रों को जागृत करना ही क्यों है ?
सम्भोग करने में जो आनंद आता है उससे 1000 गुना अधिक आनंद चक्रों के जागृत होते ही आने लगता है । ऐसा मैं नहीं कह रहा हूँ, ऐसा ऋषि कहते हैं। ऋषियों का प्रमाण शब्द प्रमाण में आता है ।
अभी हमारी सारी ऊर्जा नीचे की ओर बह रही है, मूलाधार चक्र की ओर । इसीलिए हमें सम्भोग का आनंद ही सर्वोत्तम लगता है । जब यही ऊर्जा उप्पर की ओर बहेगी सहस्त्राहार की ओर तब जो आनंद होगा उसे परमानन्द कहते हैं । यदि मनुष्य होते हुए भी मूलाधार पर ही जीवन काट लिया तो ये केवल मूर्खता ही होगी ।
अब बात करते हैं मणिपुर चक्र की साधना की । मैं यहाँ किसी चक्र के विषय में कुछ समझाऊंगा नहीं क्यूंकि 7 चक्रों के विषय में मैं आगे के आने वाले post में बात करूँगा । यहाँ इस post में, मैं केवल आपका थोड़ा सा ध्यान चक्रों की ओर आकर्षित करना चाहता था क्यूंकि इस post का मुख्य विषय मणिपुर चक्र से सम्बंधित है ।
मणिपुर चक्र की साधना करने से पहले सुखासन ( आलती – पालती मारकर ) में बैठ जाएँ । इसके बाद अपनी आँखें बंद करलें । अब धीरे धीरे अपनी साँसों को अंदर भरते समय नीचे नाभि की ओर ले जाएँ । फिर पूरा भरने के बाद धीरे – धीरे अपनी साँसों को बाहर छोड़ें । कुछ क्षण ऐसा करने के बाद “राम” नाम का जप करें । ध्वनि के साथ जप करना है, बोलते हुए जप करना है, मन में नहीं करना है । इस विधि को करने से पहले, सुखासन में बैठने से भी पहले, आपको अपने mobile में 15 minute का alarm लगाना है । फिर धीरे – धीरे अवधि बढ़ाते जाएँ । 1 घंटे तक ले जा सकते हैं ।
Alarm से यह लाभ होगा कि आपको बार-बार गिनना नहीं पड़ेगा कि आपने कितनी बार जप किया और आपके पास जितना भी समय होगा ध्यान करने का उसके अनुसार आप alarm set कर सकते हैं । नहीं तो जप करते समय हमारे दिमाग में समय को लेकर भी चिंता चलती रहती है ।
Alarm की ध्वनि धीमी ही रखना क्यूंकि ऐसा न हो कि alarm बजते ही आँख खोलकर उसे बंद करना पड़े । जब alarm बजेगा तब आपको धीरे-धीरे जप बंद करना है और आँखें धीरे-धीरे खोलनी हैं । फिर अपने दोनों हाथों की हथेलियों को रगड़ कर अपने दोनों नेत्रों पर रखें । अब यहाँ एक प्रश्न उठेगा कि हाथ रगड़ कर दोनों नेत्रों पर रखने से क्या होगा ?
दोनों हाथों की हथेलियों (palm) को आपस में रगड़ने से वे गर्म हो जाएंगी और जब आप उन गर्म हथेलियों को अपने नेत्रों पर रखेंगे तो दोनों नेत्र जो अब तक शिथिल (inactive) थी अब गर्मी पाकर फिर से active हो जाएंगी । नहीं समझ आया न ?
चलिए समझने का प्रयास करते हैं । जब सर्दियां बढ़ जाती हैं तब हमारा पूरा शरीर अकड़ा हुआ रहता है । जो फुर्ती शरीर में गर्मी के समय होती है वह सर्दियों में नहीं रहती । एक और उदाहरण से समझाता हूँ । जब किसी की मृत्यु हो जाती है तब धीरे धीरे उस व्यक्ति का शरीर ठंडा पड़ने लग जाता है । ठंडा का अर्थ है शिथिलता ।
क्यूंकि हमारी आँखें बहुत देर से बंद थीं तो शिथिल पड़ गयीं थी, थोड़ी ठंडी हो गयीं थी पर अब जैसे ही हम गर्म हथेलियां लगाएंगे वे फिर से ऊर्जा से भर जाएंगी । ठण्ड में जैसे हमें शरीर में थोड़ी फुर्ती लानी हो तो एक ही स्थान पर खड़े होकर हम कूद लेते हैं, इससे गर्मी का संचार पूरे शरीर में होता है और शरीर फिर से जो अकड़ा हुआ था फुर्ती का अनुभव करता है ।
यहाँ साधना पूरी हुई । जब धीरे धीरे आप इस साधना को बढ़ाते जाएंगे तब आप पाएंगे कि जीवन परिवर्तित हो रहा है । जब क्रोध भीतर उठेगा तो आपको पता चलेगा । आप क्रोध को नियंत्रित कर पाओगे । कहाँ क्रोध करना है और कहाँ क्रोध से बचना है यह आपके हाथ में होगा । कितना क्रोध करना है यह तक आपके हाथ में होगा ।
जीवन में कितनी ही बुरी आदत हो आपकी वह सब धीरे धीरे छूट जाएंगी । हस्तमैथुन जैसे आदत भी धीरे धीरे कम हो जायेगी । हस्तमैथुन के विषय में बहुत विस्तार से बात हुई है इस post में : हस्तमैथुन की आदत कैसे छूटेगी ?
सम्भोग का आनंद तुच्छ लगने लगेगा और चेहरे की चमक बढ़ जायेगी । फिर चेहरा चमकाने के लिए किसी भी cream – powder की आवश्यकता नहीं पड़ेगी । सहस्त्राहार चक्र को जागृत करने के लिए कुछ नहीं करना पड़ेगा । मणिपुर चक्र जागृत होते ही बाकी सभी चक्रों को ऊर्जा प्रदान करके उनको भी जागृत कर देगा । आपको केवल मणिपुर चक्र का ध्यान करना है, बाकी सब यह चक्र खुद संभाल लेगा ।
आपने यहाँ तक इतने ध्यान से पढ़ा । आपका धन्यवाद ।